Social/Family Drama #2: Bichhadna Naseeb Thha (Hindi)

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Title:

बिछड़ना नसीब था: बेनाम रिश्ते (एक नॉवेल)

Summary:

फौज़िया एक गाइनॉकॉलजिस्ट थी। अस्पताल की जॉब और प्राइवेट प्रैक्टिस में मगन, अपना आप भूले हुए थी।
हैदर एक जनरल फ़ज़ीशन था। एक अच्छे शरीक-ए-सफ़र की तिश्ना ख़ाहिशात के साथ जी रहा था।
तेईस साल की उम्र में सवेरा ने एमटेक में एडमीशन लिया था। टीन एज में ही बाप का इंतिक़ाल हुआ, फिर बीस साल की उम्र में माँ को भी खो दिया। उसे लगता था कि उसने दुनिया देख ली है। और एक नई जगह पर नई ज़िंदगी गुज़ारने के लिए बिलकुल तैयार है। फ़ौरन फ़ैसला लेने की सलाहीयत और ख़ुदमुख़तारी से भरपूर, उसे कौन सी चीज़ उसे अपने ख़ाबों को पाया-ए-तकमील तक पहुंचाने से रोक सकती थी? वो जानती ना थी कि अपने बदतरीन दुश्मन को वो अपने ख़ाक-ए-लहद फिर रही है।
कैरीयर के लिए बाक़ी सब नज़रअंदाज कर देने वाली औरत की कहानी।।। औरतों पर अपनी मुकम्मल इजारादारी चाहने वाले मर्द की कहानी।।। ख़ुद को एकल-ए-कल समझने वाली एक कमअक़्ल लड़की की नादानियों की कहानी।

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Preview:

 

इतने दिनों में पहली बार था कि वो घर पर थी और बारिश शुरू हुई थी। उमूमन तो जब भी बारिश होती, उनकी क्लासिज़ होती रहती थीं , और वो लोग क्लास अटेंड करते हुए ही एक नज़र डाल कर बारिश का नज़ारा कर लेते थे। आ ज मौक़ा था, तो वो बारिश में भीगने के लिए आ गई।
दुपट्टा फेंक कर, चप्पल उतारकर वो टियर्स पर जमा हुए पानी में छिप-छुप करती। फिर सर ऊपर कर के बारिश की तेज़ बूँदों को अपने चेहरे पर लेती। फिर आँखें बंद करके हाथ फैला कर “गोल गोल रानी, इतना इतना पानी” गाते हुए घूमने लगती। पता नहीं बारिश में भीगते हुए कितना वक़्त हो गया था। वो थोड़ी सर्दी महसूस कर रही थी। लेकिन अब भी नीचे जाने का इरादा नहीं था। उसने चेहरा पूछ कर, अपनी चप्पलें देखने के लिए नज़रें दौड़ायं, और इस की चीख़ निकलते निकलते रह गई।
हैदर दरवाज़े में खड़ा जाने कब से उसे तक रहा था। इस की तवज्जा ख़ुद पर देखकर वो आगे बढ़ आया।
“क्या हुवा, डर गईं?”
“मुझे बिलकुल भी अंदाज़ा ना था कि इस वक़्त मेरे इलावा कोई और भी ऊपर आ सकता है। यूं अचानक आपको खड़ा देखकर में डर सी गई थी।” उसने रुख़ फेर कर जवाब दिया। वो सर से पैर तक शराबोर हो गई थी। कॉटन का बादामी रंग का सूट बदन से चिपक कर गोया बदन का ही हिस्सा बन गया था। कहाँ क़मीस ख़त्म होती थी, और कहाँ उस की गंदुमी जल्द शुरू होती थी; कुछ पता नहीं चल रहा था। ऊपर से हैदर की बोलती निगाहें। उसे लगा कि आज दोनों में से कोई अपना कंट्रोल खो ही दे। शायद एतराफ़ कर ही लिया जाता। तभी ज़ोर से बादल गरजे थे, बिजली चमकी थी, और वो चौंक कर पलटी थी।
“नीचे चलते हैं। मुझे बिजली से डर लगता है। यूं भी ख़ासी सर्दी लग रही है।” हैदर ने बिना कुछ कहे उस का कुर्सी पर पड़ा हुआ दुपट्टा उठा कर उस की तरफ़ बढ़ाया था। उसने हाथ बढ़ाया तो दोनों की उंगलियां मस हुईं। सवेरा को लगा गोया बिजली सच्च में इस पर आ गिरी हो। पता नहीं इत्तिफ़ाक़ था या दोनों की ग़ैर इरादी कोशिश होती थी, कि हर बार उनके हाथ आपस में टकराते ज़रूर थे।


Date published: 3rd of August 2018

Genre: Contemporary/Relationships

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