Introduction:
दिसंबर याद का मौसम
बचपन से आज तक दल ने नित-नए ख़ाब बने कि बड़ी हो कर किया बनना है। शायरी उन में कहीं भी नहीं थी। मुझे लगता था कि शायरी ख़्वारों का काम है, बेकारों का काम है। मुझे लगता था कि शायरी मुहब्बत ज़दा दलों की पुकार है, और मुहब्बत फ़ुज़ूल होती है। लेकिन दल के किसी कोने में छिप कर बैठी हुई एक अल्हड़ दोशीज़ा अब भी मुहब्बत के राग गाती है।शायरी पर सर धुनती है। ये किताब उस की ही आवाज़ है।
The book is free for Kindle Unlimited subscribers and costs only Rs. 50 (USD 0.99). Please buy, read & review and spread the word.
Thank you!
Shabana Mukhtar
Date published: 21st of December 2021
You must log in to post a comment.