परिचय
साइमा अकरम चौधरी और दानिश नवाज – लेखक-निर्देशक की जोड़ी जिन्होंने हमें चुपके चुपके (मुझे यह काफी पसंद आया) और हम तुम (यह एक हिट और मिस) जैसे रत्न दिए। यह जोड़ी अब हमारे लिए एक और रोमांटिक कॉमेडी काला डोरिया लेकर आई है।
काला डोरिया दो परिवारों की कहानी है जो एक-दूसरे से नफरत करते हैं और एक-दूसरे का चेहरा नहीं देख सकते। लड़का और लड़की विशेष रूप से एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर सकते। असली कहानी तब शुरू होती है जब उन्हें एक जोड़े से प्यार हो जाता है। क्या वे परिवार द्वारा अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सक्षम होंगे या वे एक दूसरे का पक्ष खोजने की कोशिश करेंगे? जानने के लिए नाटक काला डोरिया देखें।
नाटक काला डोरिया एपिसोड 2 लिखित अद्यतन और समीक्षा
लट्टू की सालगिरा के साथ जो कहानी शुरू होती है वो तेज़ी से हंगामी सूरत-ए-हाल में बदल जाती है। अब्बा मियां जो वीडीयो काल पर सालगिरा की तक़रीबात देख रहे हैं, उन्हें एऩ्जाइना का दौरा पड़ता है
मुनीर का ख़ानदान इतना सख़्त नहीं है जितना कि लगता है। अस्फंद, फ़राज़, बिट्टू सब अब्बा मियां को देखने के लिए दौड़ पड़ते हैं। शुजाअ और माह नूर उनके साथ अच्छा सुलूक नहीं करते और उन्हें अब्बा मियां से मिलने भी नहीं देते। मुझे पहले ही इस हीरोइन से नफ़रत है। वो मुझे रमज़ान २०२२ ड्रामा हम तुम की नेहा की तरह लगती है
कॉलेज का मंज़र काफ़ी मज़हकाख़ेज़ था जब माह नूर अस्फंद के ग्रुप से अपना नाम वापिस लेने की कोशिश करती है। ये मंज़र ज़्यादा ख़ुशगवार था क्योंकि खासतौर पर चूँकि सैफी हुस्न प्रोफ़ैसर हम्माद के रूप में नज़र आते हैं। जहां तक सना का ताल्लुक़ है, वो इस मंज़र के लिए अच्छी तरह ऐक्टिंग करने में नाकाम रहती हैं
माह नूर ने इस के साथ किया सुलूक क्या, उस की वजह से अस्फंद दुबारा हस्पताल नहीं जाना चाहता । फिर भी अम्मां बी अस्फंद के साथ ही हस्पताल जाती हैं। अब्बा और अम्मां की बातें और फिर अब्बा और अस्फंद की छोटी सी गुफ़्तगु काफ़ी जज़बाती थी
“वफ़ा नहीं हैं हमारे बच्चों में, अम्मां अब्बा से कहती हैं
अस्फंद के चेहरे पर शर्मिंदगी अनमोल थी
क़िस्सा मुख़्तसर, माह नूर अस्फंद के घर आती है और सबको बताती है कि अस्फंद और अम्मां कहाँ थे। मुनीर अपना सुकून खो बैठा। चूँकि वो अम्मां से एक लफ़्ज़ भी नहीं कह सकता इसलिए अस्फंद को थप्पड़ मारता है। ये सब कुछ है जो अम्मां ले सकती हैं। वो शुजाअ के साथ जाने और रहने के लिए अपना बैग पैक करना शुरू कर देती हैं
अब, ये वो पेशरफ़त है जिसे हम देखना चाहते हैं
समीक्षा
ड्रामे सुनो चंदा में “पुराने कटे शाहाना की पसंदीदा लाईन थी। ये मुकालमा इस क़िस्त के बेचमें कहीं दुबारा सुनने को मिला और उसने पुरानी यादें ताज़ा कर दें
कॉलेज का मंज़र और माह नूर का ग़रूर, दोनों ही मुझे रमज़ान2022 के ड्रामे हम तुम की बहुत याद दिलाते हैं। मुझे नेहा क़ुतुब उद्दीन पसंद नहीं थी, मुझे इस ड्रामे में कामेडी पसंद नहीं थी। ना ही मुझे हम तुम का रुमानवी ट्रैक पसंद आया। ये कहानी में बहुत अचानक, बहुत कम, बहुत देर हो चुकी थी। मुझे वाक़ई हम तुम पसंद नहीं था, ख़ासकर उस के फाईनल के लिए। चूँकि ये कहानी उसी का एक इसपन आफ़ लगता है, मुझे यक़ीन नहीं है कि मुझे ये पसंद आएगा या नहीं। लेकिन ये सिर्फ़ दूसरी क़िस्त है। मैं अपनी उम्मीदें अच्छी रख रही हूँ। देखें, आगे क्या होता है
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