Title: फेरवेल गिफ्ट
Summary:
मयांक, अमीत और अंजलि तीन माह क़बल ही एक दूसरे से मिले थे,जब वह शेफ़ील्ड शॉर्ट टर्म असाइनमनट पर आए थे। बहुत कम वक़्त में उनकी दोस्ती बहुत गहिरी हो गई थी। एक छोटी सी कहानी उस दिन की जब उनमें से एक का शेफ़ील्ड में आख़िरी दिन था। दोस्ताना छेड़छाड़ थोड़ी ज़्यादा ही आगे बढ़ गई तो क्या हुआ?
कुछ लोगों को मज़ाक़ करने और यूँही चिढ़ाने की आदत होती है। इस के लिए वह मुसलसल किसी टार्गेट की तलाश में रहते हैं। ख़वास इस से दो दूसरों की दिल-आज़ारी ही क्यों ना हो। ये दोस्ताना छेड़-छाड़ अगर बढ़ जाये तो नाक़ाबिल-ए-तलाफ़ी नुक़्सान भी हो सकता है। रिश्ता टूट भी सकते हैं।
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Anjali, Amit and Mayank became friends when they came to Sheffield, UK. During their three months’ stay, they become inseparable.
Three people became friends when they came to Sheffield, UK. During their three months’ stay, they become inseparable.
A tiny tale, that narrates the last working day of one of them – the farewell day. What happens when the friendly teasing is overstretched?
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फेरवेल गिफ्ट
“हाँ, पाँच मिनट में आई।”
उसने कहा और फ़ोन रख दिया। वह तक़रीबन तैयार थी। वह जानती थी कि उसे घर से निकलते ही पाँच मिनट से ज़ाइद वक़्त लगेगा। कुजा कि, सिर्फ पाँच मिनट में वह हसब-ए-वाअदा पहुंच जाये। ताहम, उसने ये मुश्किल तरीक़े से सीखा था कि देर से जाना फ़ैशन गिरदाना जाता है।
उसने आईने में अपने अक्स को सताइश की नज़रों से देखा। वह ख़ुद को ख़ूबसूरत और दिलकश लगती थी। इस के दोस्त इस पर हंसते थे।
“तुम किस तरह अपने आपको दिलकश लग सकती हो?” वो पूछते।
“ठीक हीना, ख़ूबसूरती देखने वालों की आँखों में होती है। मैं अपने आपको ख़ूबसूरत लगती हूँ।”
“ये नहीं हो सकता। आप अपने आपको वैसे नहीं देख सकते, जैसे दूसरे देखते हैं।” वो तरदीद करते।
“शायद में देख सकती हूँ।”
लेकिन ये बेहस कभी अपने मंतक़ी अंजाम को नहीं पहुंची।अब उसने अपनी तारीफ़ ख़ुद तक महिदूदरखना सीख लिया था। जैसे कि उसने अभी किया। उसने एक ख़ाकी रंग की कॉटन की शर्ट, एक मैरून कलर का पुल ओवर और स्याह डेनिम पहना था। पुल ओवर उस के जिस्म के नशेब-ओ-फ़राज़ को नुमायां कर रहा था। डेनिम Levi की सल्लम फिट रेंज से था और इस की फिगर को मज़ीद उजागर कर रहा था।
“ठीक है। अब चलना चाहिए।”
ख़ुद से कह कर उसने चाबियाँ, वॉल़्ट, और फ़ोन को एक छोटे से बैग में डाला, एक-बार फिर आईना मैं ख़ुद को चैक किया। फिर जूते पहन कर बाहर निकल गई और दरवाज़ा लॉक कर दिया। कॉरीडोर से गुज़रते हुए वह दीवारों, रौशनियों, दूसरे अपार्टमंट्स के बंद दरवाज़ों को हसरत भरी निगाहों से देख रही थी। मज़ीद कुछ घंटे इस सोच के साथ ही अफ़्सुर्दगी की लहर ने इस के वजूद का अहाता कर लिया।
Word Count: 3500
Read time: 25 minutes
Date published: 22th of July 2018
Genre: Contemporary/Relationship
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