
हब्स क़िस्त 24 तहरीरी अपडेट और जायज़ा
सब जमा हो जाएं।।। ये हब्स की क़िस्त २४ का जायज़ा लेने का वक़्त है।
क़ुदसिया सबसे बदतरीन माँ है
मैंने ये क़िस्त देखी और मेरा सर फटने ही वाला था। माँ को अपनी बेटी की क़ीमत लगाते देखना बहुत तकलीफ़-दह था। और फिर भी, मैंने क़ुदसिया के लिए कोई हमदर्दी महसूस नहीं की, कुछ भी महसूस नहीं किया।
क़ुदसिया वो माँ नहीं है जो अपनी बेटीयों के लिए परेशान है और ना ही वो आईशा के मुस्तक़बिल के लिए फ़िक्रमंद है। वो सीधे सीधे आईशा को बेचने के लिए सवाल डाल रही है। मुझे उन बेहूदा अलफ़ाज़ के लिए अफ़सोस है, लेकिन जब मैं क़ुदसिया को देखती हूँ तो ऐसा ही महसूस होता है। हर एक दफ़ा।
वो यावर की बहन को घर के हालात के बारे में बताती है, और बदले में ये वाअदा लेती है कि यावर उनके लिए एक घर ख़रीदेगा। इस बार भी वो आईशा को अपने नाम पर घर करवाने के लिए मोहरा के तौर पर इस्तिमाल करती है। कैसी माँ ऐसा करेगी? सिर्फ बेग़ैरत किस्म की माँ ही ऐसा करेगी। क़ुदसिया की हरकतों को दरुस्त साबित करने की कोशिश ना करें। बेटीयों के मुस्तक़बिल के लिए परेशान होने और उन्हें बेचने में फ़र्क़ है। अगर में कभी बदतरीन माओं की फ़हरिस्त मुरत्तिब करूँ तो क़ुदसिया यक़ीनी तौर पर चार्ट में सर-ए-फ़हरिस्त होगी।
~
बिगड़ेल ज़ोया
बिल्क़ीस ज़ोया से इस के बदतमीज़ रवैय्ये की वजह से नफ़रत करती रहती है, और ज़ोया जो अब्बा ज़बान दर्ज़ी करती रहती है। इस लड़की को अपने बड़ों से बदतमीज़ी करने में कोई श्रम नहीं आती, चाहे वो उस की माँ हो, बहनें, फफो या सास। जहां तक आमिर का ताल्लुक़ है, वो उस के साथ क्रेडिट कार्ड की तरह बरताव करती है, और बस।
~
आईशा का रोना धोना जारी है
आईशा का मुसलसल रोना और उदास रहना मेरे आसाब पर ज़व्वार रहने लगा है। बासित बार-बार काल करता है और टेक्स्ट करता है और आईशा से राबिता करने की कोशिश करता है। इस सब का आईशा के सर पर कोई असर नहीं होता। इस के बजाय, उसे बस इतना याद है कि बासित ने उसे तलाक़ देने का सोचा था। बहन, अब वो बदल रहा है और अच्छा बन रहा है। कम अज़ कम तुम ये कर सकती हो कि अपने चेहरे से इस सड़ाहट को हटा दो और बासित के साथ अच्छे से पेश आओ। हरवक़त रोना धोना। उफ़।।।
~
बानो, ख़ानदान की वाहिद समझदार शख़्सियत
बानो हमेशा की तरह देख-भाल करने वाली और समझदार है। वो बासित से घर के जाली काग़ज़ात के बारे में बात करती है। बासित ने मदद का वाअदा किया है। काश बानो बासित से ज़ोया के मुआमले पर यक़ीन करती, उतना फड्डा नहीं होता। आईशा की शादी टूटने के दहाने पर ना होती।
बासित, बेवक़ूफ़ बासित
जहां तक बासित का ताल्लुक़ है तो वो भी बहुत अहमक़ है। वो समझ नहीं पा रहा है कि सोहा इस पर डोरे डाल रही है, ग़ैर शाइस्ता अलफ़ाज़ के लिए माज़रत।।। बासित सोहा को फ़हद की शादी पर ले जाने का वाअदा भी करता है। इस से लोगों और आईशा के लिए किया तास्सुर छोड़ेगा जो पहले से ही उदास ए एफ़ है।
एक कार हादिसा उस जोड़े को इकट्ठा नहीं कर सका। मैं हैरान हूँ कि क्या होगा।
मिलते हैं।
~
Until next review, please check out my books on Amazon.
Shabana Mukhtar