Introduction
फ़सीहा डाइजिस्टों की दीवानी है। डाइजिस्ट की कहानियां पढ़ पढ़ कर उसे रिवायती लव स्टोरी से नफ़रत सी हो गई है। और कुछ नया, कुछ अलग ख़ाहिश रखती है। इस का निकाह उस के कज़न समआन से हो गया है। वो हरवक़त इसी बात पर कुढ़ती रहती है कि इतनी घुसी पिटी ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी।
फिर सामेआ की शादी पर सचवीशन बदल जाती है। धीरे धीरे उसे लगने लगता है कि कज़न से शादी इतनी बुरी बात भी नहीं, और वो एडजस्ट हो जाएगी। समआन और वो एक दूसरे के साथ अच्छा वक़्त गुज़ारने लगते हैं।
लेकिन तभी सचवीशन फिर से बदल जाती है। जब उसे लगता है कि सब कुछ ठीक हो गया है तो सब कुछ ग़लत हो जाता है।
एक आम सी लड़की की कहानी जिसे आम सी कहानियां पसंद नहीं थी। जो रिवायती ज़िंदगी गुज़ारना नहीं चाहती थी।
“और वो हंसी ख़ुशी रहने लगे” इस थीम की छटी कहानी।
Length: 88 pages
***
हिस्सा 1
“मुझे देखने दो ना। तुम ने तो देखा हुआ है। तुम्हारा तो दूध शरीक भाई है। सामेआ ने सरगोशी की।
“तो तुम भी तो उसे शादी के बाद ज़िंदगी-भर देखने वाली हो। नहीं देखा तो भी क्या फ़र्क़ पड़ता है। जवाब में फ़सीहा ने भी सरगोशी की थी।
वो दोनों कमरे की खिड़की से झाँकते हुए एक दूसरे को टहोके मार रही थीं।
“कितनी ख़राब हो तुम फ़सीहा तुम चाहती हो कि मैं बिना देखे ही शादी कर लूं।“ सामेआ ने मस्नूई ख़फ़गी से कहा।
“अगर तुम ने देख कर पसंद ना किया तो भी कौन तुम्हारी बात सुनने वाला है? जो रिश्ता तै हो गया सो हो गया।“
वो बहुत ज़्यादा हमदर्दी से बोली थी तो सामेआ की हंसी छूट गई। दोनों किलकिलाने लगीं।
तभी पीछे से ज़ोर से आवाज़ आई। ”तुम दोनों यहां क्या कर रही हो?”
सामेआ और फ़सीहा उछल पड़ीं। समआन नथुने फुलाए उन्हें घूर रहा था, गोया आँखों से कच्चा चबा जाएगा। सामेआ ने आव देखा ना ताव, बगटुट वहां से भाग खड़ी हुई। फ़सीहा का पारा चढ़ गया था। एक तो इतनी ज़ोर से बोला था कि दिल अभी तक सहमा हुआ था। दूसरे उन्हें डाँट भी रहा था। ये तो हद ही हो गई।
वो बेहस करने के लिए तैयार हो गई थी।
“घर में हैं, क्या प्राब्लम है?” वो नथुने फला कर, हाथ कमर पर रख कर पूछने लगी।
“तुम दोनों मर्दाने में झांक रही थीं।“ वो तक़रीबन ग़ुर्रा कर बोला था।
“तो?” उस ने भवें उचका कर पूछा, जैसे मर्दाने में झांकना कोई बड़ी बात ना हो। अंदर ही अंदर डर रभी थी। हरकत तो उन की ग़लत थी। अगर बुज़ुर्गों में से किसी को पता चल जाता तो ज़रूर ही डाँट पड़ना थी।
“तो? शर्म नहीं आती। मुहम्मद अकरम के घराने की लड़कीयों की ये हरकत।“ वो दाँत पीस कर बोला था। उसे इतनी ढिटाई की उम्मीद नहीं थी।
“हाँ, सामेआ कामरान को देखना चाहती थी। ज़िंदा।।। मेरा मतलब है कि फ़ोटो के इलावा।।। बचपन में देखा था। इस के बाद से अब तक सिर्फ फ़ोटोज़ ही देखे हैं। अब इन दोनों की शादी होनी है। इस का हक़ है। और कामरान मेरा रज़ाई भाई है। रज़ाई रिश्तों का पर्दा नहीं होता। आप इस्लाम में इस हुक्म के बारे में तो जानते होंगे, मुफ़्ती साहिब?”फ़सीहा का लहजा ज़हरीला था।
“कामरान के इलावा भी लड़के हैं उधर।। समआन ने ग़ुस्से से कहा था।
“आप हैं यहां। सामेआ आप की बहन है। मैं फ़सीहा हूँ, आप की चचाज़ाद और इत्तिफ़ाक़न आप की मनकूहा। मेरा आप का पर्दा नहीं है।“ तंज़िया लहजे में कह कर वो ज़नाने की तरफ़ बढ़ गई।
समआन हक्का बका सा खड़ा रह गया था। नज़रें इसी रास्ते पर टिक्की हुई थीं, जहां से अभी अभी उस की मनकूहा गुज़री थी। बचपन के बाद शायद ये पहला मौक़ा था कि वो दोनों आमने सामने, एक दूसरे की नज़रों में नज़रें डाले बात की थी।
समआन की जॉब शहर में थी। लड़कीयां भी पढ़ाई के लिए शहर में ही होती थीं, लेकिन अलग फ़्लैट में। अगर कभी इत्तिफ़ाक़ से एक साथ हवेली में मौजूद भी होते तो मुलाक़ात का सवाल नहीं उठता था कि घर का माहौल मज़हबी था। ज़नाना मर्दाना अलग थे, खाना भी अलग खाया जाता। सो बचपन के बाद शायद ही कभी मुलाक़ात या गुफ़्तगु हुई थी। और अब इस तरह मिली थी। वो उस की ज़बान की तंदी से घायल सा हो गया था।
फ़सीहा सीधा सामेआ के कमरे में पहुंची थी और इस के सर के पास खड़े हो कर ज़ोर से चिल्लाई थी।
“तुम दग़ाबाज़।।। धोखेबाज़।।। बदतमीज़ लड़की।।। क्यों मुझे वहां अकेला छोड़ कर भागी चली आई थी?”
सामेआ भी अपने नाम की एक ही थी। उस को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा था। वो जोश से उठ कर बैठी और उस से सवाल जवाब करने लगी।
“क्या बातें हुई? मुझे तो भया को देख कर ही इतना डर लगा था। तुम तो शायद झगड़ रही थीं। या फिर हो सकता है कि बहुत मज़े से प्यार भरी बातें हुई हों।“
“फ़ुज़ूल बकवास ना करो।“ फ़सीहा ने ग़ुस्से से दाँत कचकचा कर कहा
“क्या हुआ है? कोई मुझे भी बताएगा?” ये लामेआ थी। वो अब तक उन की बातों को टुकुर टुकुर देखते हुए सुन रही थी। आख़िर जब रहा ना गया, तो पूछ ही लिया।
“मैं और सामेआ मर्दाने में झांक रहे थे। कामरान को देखने के लिए। तब तक भया वहां आ गए। और इन्होंने हमें डाँटा। मैं तो भाग कर चली आई लेकिन फ़सीहा की कुछ बातें हुई है भया से। सामेआ ने मज़े ले-ले कर बताया।
“हाव रोमांटिक! लामेआ ख़ुशी से उछल कर बोली थी।तो फिर पूछो ना कि क्या हुआ?
“वो बता ही नहीं रही। दोनों बहनें आपस में ही अपने भया और भाभी का सोच सोच कर ख़ुश हो रही थीं, और भाभी जान थीं कि उन्हें ग़ुस्सा भरी खा जाने वाली नज़रों से देख रही थीं। इस का बस नहीं चलता था कि वो उन्हें कच्चा चबा जाये। उन के भाई की बात सुनकर उसे बहुत ग़ुस्सा आया था। और बहनें थीं कि आग में तेल डाल रही थीं। लेकिन वो ये भी जानती थी, कि जब तक सारी बात पता नहीं चलेगी, वो दोनों सुकून से नहीं बैठींगी। इस लिए उसे बताना ही पड़ा।
“कुछ नहीं। मुझे डाँट रहे थे, कि हम बाहर मर्दाने में क्यों झांक रहे हैं। मैं ने भी बता दिया कि सामेआ अपने होने वाले शौहर को देख रही थी। इस का होने वाला शौहर मेरा दूध शरीक भाई है और आप और में तो माशाअल्लाह निकाह के बंधन में बंधे हुए हैं। इस लिए मेरा आप का पर्दा नहीं बनता।
जब कहानी बताना शुरू की तो गु़स्सा ख़त्म हो गया और चटख़ारे ले-ले कर सारा वाक़िया सुनाया। सोच कर गुदगुदी सी हो रही थी कि इस के इस तरह जवाब देने पर समआन को कैसा लगा होगा
“वाइ। कितनी रोमांटिक कहानी है।
“प्लीज़।।।इस में कुछ भी रोमांटिक नहीं है। वो फ़ौरन तुनुक कर बोली थी। “इन्होंने एक फ़ुज़ूल सी बात की और मैं ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे दिया। वो भी मानने को तैयार नहीं थी।
“यही तो रोमांस है। कि हीरो और हीरोइन अचानक मिलते हैं।हीरो ग़ुस्सा करता है, हीरो हीरोइन बदतमीज़ी करेगी। झगड़ा होगा। फिर धीरे धीरे दोनों एक दूसरे का ख़्याल रखने लगेंगे। एक दूजे को पसंद करने लगेंगे। आख़िर में दोनों में प्यार हो जाएगा। फिर दोनों एक दूसरे के बग़ैर रह नहीं पाएँगे। और वो हंसी ख़ुशी रहने लगे। दी ऐंड।“ लामेआ ने ताली बजा कर ख़ुशी से झूमते हुए कहा था।
“बिलकुल।।। अल्लाह।।। कितना मज़ा आएगा।।। फ़सीहा तुम प्लीज़ हमें हर बात बताया करना, ठीक है?” सामेआ ने मिन्नत की।
उन की बे-सर पैर की बातें सुनना फ़सीहा किए बस की बात नहीं थी। वो वहां से उठ कर चली गई।
٭٭٭
I hope you liked these sample chapters. I cannot share any more, as Amazon restricts me to share on 10% of the book. You can buy the book here.