परिचय
साइमा अकरम चौधरी और दानिश नवाज – लेखक-निर्देशक की जोड़ी जिन्होंने हमें चुपके चुपके (मुझे यह काफी पसंद आया) और हम तुम (यह एक हिट और मिस) जैसे रत्न दिए। यह जोड़ी अब हमारे लिए एक और रोमांटिक कॉमेडी काला डोरिया लेकर आई है।
काला डोरिया दो परिवारों की कहानी है जो एक-दूसरे से नफरत करते हैं और एक-दूसरे का चेहरा नहीं देख सकते। लड़का और लड़की विशेष रूप से एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर सकते। असली कहानी तब शुरू होती है जब उन्हें एक जोड़े से प्यार हो जाता है। क्या वे परिवार द्वारा अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सक्षम होंगे या वे एक दूसरे का पक्ष खोजने की कोशिश करेंगे? जानने के लिए नाटक काला डोरिया देखें।
नाटक काला डोरिया एपिसोड 3 लिखित अद्यतन और समीक्षा
इस क़िस्त में माह नूर और असफ़ी ने एक दूसरे पर बहुत सारे प्रियंक किए, और इस में से कुछ मुझे पसंद आए, कुछ नहीं
माह नूर ने असफ़ी की मोटर साईकल को लॉक कर दिया और जवाब में असफ़ी ने माह नूर की गाड़ी के तमाम टावर निकाल दिए। मुझे इन दोनों में से कोई भी पसंद नहीं आया, सिवाए उस के कि छिटकी हर ज़रारत करने के बाद बिलकुल मासूमियत से कह देती है कि “मैंने बिलकुल नहीं किया।
भांडा फोड़ना तो कोई बच्चों से सीखे। जिस चीज़ ने मुझे सबसे ज़्यादा महज़ूज़ क्या वो थी गौहर और असफ़ी की ट्रेलर पर रखी मोटर साईकल की सवारी । गौहर यूं कर रहा था गेवा वो कोई ऐक्टर या बड़ा सियास्तदान है जो रैली पर है और हाथ हिला हिला कर लोगों से ख़िराज-ए-तहिसीन वसूल कर रहा हो।ये काफ़ी मज़ाहीया था
ये क़िस्त सिर्फ़ तफ़रीही नहीं थी। इस में कुछ जज़बाती सीन भी थे। शुजाअ अपने नुक़्सान के बारे में फ़िक्रमंद है 1 करोड़ का नुक़्सान कम नहीं होता), मुनीर उस के बारे में सुनकर ख़ुश नहीं हैं। माह नूर भी इस नुक़्सान के बारे में फ़िक्रमंद है, लेकिन इस की ज़बान अब भी बिलकुल बकवास करने से नहीं रुकती है। वो प्रोजेक्ट के अख़राजात में से अपना हिस्सा अदा करने के लिए भी पैसों का बंद-ओ-बस्त नहीं कर सकती। और जब निदा ने इस की तरफ़ से असफ़ी को पैसे दे दिए तो उसने इतने बुरे तरीक़े से बात की, उफ़। मेरी ऐसी बहन होती तो मैं रख के दो थप्पड़ लगा देती। कितनी ज़हरीली ज़बान है इस की, इस्तिग़फ़िरुल्ला मुझे माह नूर बिलकुल पसंद नहीं है
तबस्सुम बेगम और इख़तियाइर अहमद की आपस की बातें थोड़ी रुमानवी हैं, स्वीट भी।। नीज़, क़राइन कहते हैं कि किकू मामूं अब भी , मंगनी टूटने के पाँच साल बाद भी बिट्टू के साथ गोडे गोडे इशक़ में मुबतला हैं। लिहाज़ा, ये कहना ग़लत ना होगा कि दोनों तरफ़ है आग बराबर लगी हुई..
अली सफ़ीना को अपने पंजाबी अवतार में देखने का बेसबरी से इंतिज़ार है। तंव पंजाबी है इसलिए कूकू को भी पंजाबी बोलना चाहिए। अली सफ़ीना वैसे भी किसी भी किरदार में हूँ, छा जाते हैं
अब मिलते हैं अगले हफ़्ते।।
ओवर एंड आउट।
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