Sharing sample chapters from my book “Baton Baton Mein”. It is a A May-December Love Story that highlights problems that teenagers face. It is a clean and sweet romance with no profanity or sexual content. For reading the complete novella, buy it from Amazon.
Shabana Mukhtar
Introduction
A May-December Love Story that highlights problems that teenagers face.
नेहा हाईस्कूल की स्टूडैंट है। इस पर स्कूल की सहेलियों का मुसलसल प्रैशर था कि कोई ब्वॉय फ्रैंड बनाए। लाईफ़ एंजॉय करे। मोबाइल ख़रीदे। लेकिन उसे ये सब पसंद नहीं था। फिर उसी ज़हनी दबाओ में आकर वो एक झूटी कहानी घड़ लेती है। और वो कहानी उस का पीछा नहीं छोड़ती।
फिर उस के दिल की हालत बदल गई । और ये मज़ीद बुरा हुआ था। क्योंकि उस का दिल रिहान से लगा था। वो इस से दस साल बड़े थे। इस के दौर की फोपो के देवर थे।वो उस की दस्तरस से बहुत दूर थे।
लेकिन दिल है कि मानता नहीं। बस इसी कश्मकश में इस की ज़िंदगी गुज़र रही थी।
टीन अज्र लाईफ़ के कुछ मसअलों को उजागर करना वाला एक नावलट।
एक फ़ैमिली ड्रामा, समाजी, मुआशरती , रूमानी कहानी।
Length: 90 pages
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पहला हिस्सा
मैथ्स के टीचर मकाबी मुसावात cubic equations सिखा रहे थे। क्लास के स्टोदनटस का रद्द-ए-अमल काफ़ी मुख़्तलिफ़ था। सामने की क़तार में बैठे तलबा-ए- और तालिबात तेज़ी से पेन को नोट बुक पर घसीट रहे थे ताकि टीचर से पहले ही मुसावात को हल करलीं। जो स्टूडैंटस इतने ज़हीन नहीं थे, वो टीचर की रफ़्तार को मैच करने की भरपूर कोशिशों में लगे थे कि कोई स्टेप मस ना हो जाये। कुछ मारे बाँधे बोर्ड पर लिखी तहरीर को बिना सोचे समझे नक़ल कर रहे थे कि नोटिस मुकम्मल हो जाएं और क्लास ख़त्म होने के बाद एक लम्हा भी रुकना ना पड़े। कुछ अपनी सेट में कसमसा रहे थे। नज़र बार-बार घड़ी पर पड़ती थी।
ये सुबह से अब तक की चौथी क्लास थी। लगातार इतना वक़्त तक ध्यान ना दे पाना, इर्तिकाज़ का बार-बार टूटना, भूक, हाजत और ग़ैर दिलचस्पी।।। स्टूडैंटस की बेचैनी की वजूहात में से कुछ एक थीं।
जूं ही रेसीज़ का वक़फ़ा हुआ और बेल बजने की आवाज़ आई, कुछ लड़के अपनी जगह उठ खड़े हुए। टीचर ने बोर्ड पर लिखना बंद कर दिया था और अब अपनी किताबें और चाक समेट रही थीं।
“प्लीज़।।। बैठ जाईए।और बोर्ड पर लिखा हुआ हर एक लफ़्ज़ कापी कीजीए। दो तीन मिनट क्लास में रुक जाने से आपकी जान नहीं निकल जाएगी।”
उन्होंने मख़सूस तंज़िया अंदाज़ में कहा। वो अंदाज़ जो बिना मर्द-ओ-औरत की तफ़रीक़ के अक्सर मैथ्स के टीचरों में पाया जाता है। शायद उनके सब्जेक्ट की ख़ुशकी उनकी ज़बान पर भी चढ़ जाती है। या शायद दूसरे सब्जेक्ट्स के तईं स्टूडैंटस का ज़्यादा झुकाओ और दीगर टीचरज़ का मज़ाक़ उड़ाना उस की वजह हो। बहर-ए-हाल , वो अपने अंदाज़ में आगे भी कह रही थीं। “कल के लिए अगली मश्क़ का होमवर्क है। इस से अगली मश्क़ हम कल क्लास में हल करेंगे।”
क्लास के बाहर भागे थे। और लड़कीयां अपनी अपनी सहेलीयों का ग्रुप बना कर बैठ गई थीं।
अहमद नगर आर्मी पब्लिक स्कूल के दसवें क्लास के बोर्ड एगज़ामज़ होने में दो तीन महीने ही बच्चे थे। क्लास की टॉपर लड़कीयां और लड़के पढ़ाई में मसरूफ़ थे। रेसीज़ में भी मैथ्स के मुश्किल सवालात हल करने की कोशिश करते थे। एक दूसरे को थियोरम समझने में मदद करते थे।
दूसरी तरफ़ वो स्टूडैंटस थे, जो इतने होशियार नहीं थे, लेकिन पढ़ाई का शौक़ था और मेहनत करने में भी यक़ीन रखते थे।
फिर वो लोग थे जो पढ़ाई लिखाई से दूर भागते थे। या तो इतने ज़हीन नहीं थे या फिर शौक़ नहीं थे या फिर किसी और तरफ़ ध्यान होता था। वो दूसरे टॉपिक पर बातचीत करते थे।
दसवीं क्लास में दो ही टॉपिक डिस्कस होते थे। बोर्ड एग्जाम्स और लड़के…
सच कहा जाये तो पहला टॉपिक इतना अहम ना था, जितना दूसरा… और वो टॉपिक तो को ऐजूकेशन मैं बचपन से चलता आ रहा होता है।
लेकिन कभी पुराना नहीं होता…
कभी ख़त्म नहीं होता…
कभी बोर भी नहीं होता…
फ़रह, रश्मी, अनीता, नेहा, और कोमल का एक ग्रुप भी था। उन में आपस में बस यही ताल्लुक़ था कि पांचवीं क्लास से एक ही बैंच पर बैठती थीं और स्कूल से वापसी भी साथ होती थी। पहले बैंच के साथी हुए, फिर घर वापसी पर बातें करते करते थोड़ी दोस्ती हुई, और अब पांचों स्कूल में “फ्रैंक” के नाम से मशहूर थीं। ये नाम भी उन्हों ने ख़ुद ही रखा था। अपने नामों के पहले हर्फ़ को मिलाकर “फ्रैंक” बना दिया था।
और वो थीं भी फ्रैंक। या फिर अब दोस्ती इतनी थी कि हर बात बला झिझक, फ्रैंकली कह दी जाती थी।
नेहा दूसरी टाइप की स्टूडैंट थी। बहुत ज़हीन ना सही, बहुत कुंद ज़हन भी नहीं थी। पढ़ाई लिखाई में दिलचस्पी थी। कुछ उस के पापा की ताकीद थी। खास तौर पर कम्पयूटर का सब्जेक्ट उसे बहुत अच्छा लगता था। लेकिन इत्तिफ़ाक़ था कि उस की सहेलियों को पढ़ाई से ज़्यादा लड़कों में दिलचस्पी थी।
अनीता, फ़रह और रश्मी लंबी और सेहत मंद सी थीं। तीनों आर्मी फ़ैमिलीज़ से थीं। बोल्ड ऐंड ब्यूटीफुल टाइप की थीं। कोमल और नेहा का क़द मुनासिब था। कोमल भी मुतनासिब बदन की मालिक थी। रंग साँवला था लेकिन मेक-अप से कसर पूरी कर लेती थी।
“मुझे तो इर्फ़ान पसंद है। कोई उस पर नज़र ना रखे।” फ़रह ने बेधड़क ऐलान किया था।
“अच्छा … कुछ कहा है उस ने?” रश्मी ने पूछा। फ़रह ने नहीं में सर हिला दिया। “संजय ने तो मुझे लेटर दिया है। लंबी चौड़ी बातें की हैं। मैं और वो मिलने के लिए फ्राइडे को पार्क जा रहे हैं । हमारी फर्स्ट डेट।” रश्मी बोली थी।
“मैं और अक्षय भी साथ आ जाते हैं।” कोमल ने कहा था।
“क्यों? कबाब में हड्डी बनने के लिए?” अनीता ने छेड़ा।
“नहीं यार… सिर्फ लड़का लड़की को साथ देख कर समझ जाते हैं कि जोड़ा है। अक्सर तो पकड़ कर सवाल जवाब भी करते हैं। चार पाँच का ग्रुप हुआ तो ज़्यादा ध्यान नहीं जाता।” कोमल ने सफ़ाई दी।
रश्मी फ़ौरन ही मान भी गई थी। “डन है। मैं अपना ब्लैक see through टाप और रैड टाइटस पहनूँगी। तुम कोई और कलर पहनना।”
“ठीक है। मैं ने Amazon से एक आफ़ व्हाइट स्लीव–लैस टाप ख़रीदा है । उस के साथ ब्लैक मिनी स्कर्ट और ब्लैक लॉंग बूट्स। अनीता। तुम भी हमारे साथ आ जाना।” कोमल ने ऑफ़र की।
“नहीं… सुधीर और मेरा मूवी का प्लान है। इंग्लिश मूवी है। बहुत मज़ा आएगा।” अनीता चटख़ारा लेकर बोली तो बाक़ीयों के मुँह खुल गए थे।
अनीता इन सब में सब से तजरबाकार और बोल्ड थी। तजरबाकार ऐसे कि बचपन से ही ब्वॉय फ़्रैंड्ज़ बनाती आई थी और बड़े धड़ल्ले से उन के बारे में बातें भी करती थी। कुछ उस की बातों का असर था। कुछ टीन एज का ख़ुमार ही ऐसा होता है। बाक़ी लड़कियाँ भी ब्वॉय फ्रैंड बनाना ज़रूरी जानने लगी थीं। अब अनीता ने इंग्लिश मूवी की बात कर के बाक़ीयों को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया था।
“नेहा तुम भी कुछ कहो… तुम्हें अब तक क्लास में या सीनियर्ज़ में से कोई पसंद नहीं आया ? अगर कहो तो तुम्हारी सेटिंग करवा देते हैं …“
अनीता ने अब अपना रुख नेहा की तरफ़ किया था। नेहा कुछ नहीं बोली थी।
उन के ग्रुप की सब से सादा, और सब से आम नज़र आने वाली लड़की नेहा ही थी। दुबली पतली सी थी। रंगत साफ़ थी, लेकिन बहुत ख़ूबसूरत नहीं कही जा सकती थी। हाईट ठीक ठाक थी। और घने काले बाल ब्वॉय कट करवा रखे थे। रख-रखाव में भी सादगी ज़्यादा थी। वर्ना लड़कियाँ तो यूनीफार्म में भी सजने सँवरने के दस तरीक़े निकाल लेती थीं।
कुछ उस की नेचर ही वैसी थी, और कुछ उस के पेरेंट्स की सख़्ती थी कि वो अब तक इन चक्करों में नहीं पड़ी थी। बस मुस्कुरा कर उन सब की बातें सुनती रहती थी।
उसे अपनी क्लास के या सीनीयर लड़कों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन नहीं… ऐसा नहीं था कि वो अपनी उम्र के बरख़िलाफ़ बहुत संजीदा हो। उस का किसी पर कोई क्रश ना हो। उसे इंग्लिश के टीचर जावेद सर अच्छे लगते थे… उसे स्पोर्टस के टीचर चौधरी सर अच्छे लगते थे… और उसे रेहान अली अच्छे लगते थे…
उन में से किसी से भी मिलने के लिए उसे किसी सेटिंग की ज़रूरत नहीं थी। और उन में से कोई भी उतना अच्छा नहीं लगता था कि वो अकेले मिलना चाहे।
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दूसरा हिस्सा
नेहा हसन स्कूल से अपनी चारों सहेलियों के साथ निकलती थी। दो तीन मिनट की वाक पर फ़रह और कोमल अलग अलग गलियों में मुड़ जाते थे। फिर रश्मी का घर आ जाता और वो बॉय कह कर अपने गेट में घुस जाती। रोड के उस पार ही अनीता का भी घर था।
रोड क्रास कर के नेहा को दस मिनट मज़ीद पैदल चलना पड़ता था। सड़क पर मौजूद माल के दाएं हाथ पर एक बैकरी थी। फिर एक ऊंची सी बिल्डिंग जहां तीन स्क्रीन वाला थेटर था। उस के बाद एक गिफ्ट शाप थी जहां बच्चों के गेम्ज़ से लेकर लड़कीयों की नक्ली ज्वैलरी तक सब कुछ मिलता था। उस के बाद बाएं कॉर्नर पर एक छोटा सा रैस्टोरैंट था। उस के बाद एक हार्डवेअर की दुकान थी। लैपटॉप वग़ैरा के स्पैर पार्ट्स मिलते भी थे और मुरम्मत भी की जाती थी। साथ में इंटरनैट कैफे था और उस के बाज़ू एक हेयर सैलून था।
हार्डवेअर शाप और इंटरनैट कैफे रेहान अली की मिल्कियत थे। उन्हों ने हार्डवेअर इंजीनीयरिंग की थी। बचपन से ही चीज़ें तोड़ने जोड़ने का शौक़ था। जॉब करने की बजाय अपनी शाप डाली थी। और तीन चार सालों में बिज़नस अच्छा चल निकला था। इंटरनैट कैफे भी सेट हो गया था। पच्चीस छब्बीस साल की उम्र में इतनी कामयाबी किसी किसी को ही नसीब होती है। और ये सब कुछ उन्हों ने अपने बल–बूते पर स्टेबलिश किया था। कभी-कभार किसी छोटी मोटी कंपनी या कॉलेज में काम करने का टेंडर मिल जाता। इसी प्लाज़ा के रिहायशी हिस्सा में उस का घर था।
नेहा का हार्डवेअर की दुकान पर बहुत आना जाना था।
उसे अब भी अच्छी तरह याद था कि रेहान से उस की मुलाक़ात कब और किस तरह हुई थी।
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